"चल उड़ जा रे पंछी, अब देश हुआ बेगाना..." नम आंखों से गांव वालों ने मनाई आखिरी दिवाली
भारत के एक छोटे से गाँव में इस बार दिवाली का माहौल कुछ अलग ही था। जहाँ हर साल रोशनी और खुशियों की चकाचौंध रहती थी, इस बार वहाँ उदासी का साया था। यह गाँव जल्द ही विकास परियोजना की भेंट चढ़ने वाला है। प्रशासन ने गाँव के लोगों को उनके घर खाली करने का नोटिस दे दिया है, और इसलिए, इस बार की दिवाली उनके अपने गाँव में उनकी आखिरी दिवाली थी।
दिवाली की तैयारियों के बीच गाँव के हर घर में एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी।
लोग अपने घरों को सजाने में लगे थे, लेकिन दिल में दर्द और आँखों में नमी साफ झलक रही थी। उम्रदराज लोगों के लिए यह जगह सिर्फ एक गाँव नहीं थी, बल्कि उनकी यादों का ठिकाना था, जहाँ उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया था। हर गली, हर पेड़, और हर आँगन से उनकी कई कहानियाँ जुड़ी हुई थीं।
इस बार दिवाली पर दिए जलते हुए लोगों के चेहरों पर मिलाजुला भाव था -
एक तरफ तो यह त्योहार की रौनक थी, वहीं दूसरी ओर अपने घर-गाँव को छोड़ने का दर्द। "चल उड़ जा रे पंछी, अब देश हुआ बेगाना..." जैसे गीतों की गूंज गाँव के माहौल को और भी भावुक बना रही थी। किसी ने कहा कि घर छोड़ते वक्त की ये आखिरी दिवाली है, इसलिए इसे कुछ खास बनाना चाहिए, ताकि गाँव की याद हमेशा दिल में बसी रहे। गाँव वालों ने अपने मंदिरों और घरों में दीयों की कतारें सजाईं, जैसे मानो ये दीये उनके प्यार और लगाव का अंतिम संदेश हों।
छोटे बच्चों को शायद यह समझ नहीं आ रहा था कि गाँव छोड़ने का क्या मतलब है,
परंतु उनके माता-पिता की आँखों की नमी देख, वे भी चुप थे। बुजुर्गों ने कहा कि गाँव की मिट्टी की खुशबू और यहाँ की यादें हमेशा उनके साथ रहेंगी, चाहे वे कहीं भी जाएँ। लोग रातभर मंदिरों में प्रार्थना करते रहे कि भविष्य में कहीं भी रहें, लेकिन गाँव की तरह की शांति और अपनापन उनके जीवन में हमेशा बना रहे।
इस बार की दिवाली उनके लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि अपने गाँव के प्रति प्यार और उससे बिछड़ने का आखिरी संदेश थी।
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